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‘Sabzi ki paheli’: Poem by Ranchit Awasthee, Apeejay School, Kharghar

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मम्मी ने मुझसे सब्जी मँगवाई
लम्बी सी लिस्ट मुझसे लिखवाई

सब्ज़ी हो कैसी फिर मुझे समझाया
ग़लत न लाऊँ ये मुझको धमकाया

आलू मँगवाए थे ममी ने गोल गोल
जिस आलू को देखूं नजर आय झोल

मेथी हो छोटी छोटी,थी ये धमकी कड़ी
वहाँ एक ही साईज था कौन छोटी बड़ी

प्याज़ की दुम को था देखकर लाना
हर मनके वाला प्याज़ होता है काना

मैंने एक प्याज़ की दुम को चीर कर देखा
सब्ज़ी वाले ने मुझे बहुत घूर कर देखा

टमाटर थे मम्मी ने सिर्फ़ देसी मँगाए
सब्ज़ी मंडी में मगर विदेशी थे आए

मम्मी ने कहा तीखी मिर्चों को लाना
सी-सी करते हमें फिर याद आए नाना

हमसे जो कुछ बना वो घर को लेकर आए
मम्मी ने कहा बेटा तम्हें नज़र न लग जाए

— रंचित अवस्थी
कक्षा : 7 A

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