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‘हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो’: Poem by Aksh Gupta, AIMC 

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अपने दिल की कह पा रहे हो ?

दूसरे दिल की सुन पा रहे हो ?

प्यार और अधिकार में भेद कर पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

जब चाहे गलती कर पा रहे हो ?

हँसते-हँसते रो पा रहे हो ?

दुखी मन से भी हँस पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

कल से आगे बढ़ पा रहे हो ?

अगले कल से बच पा रहे हो ?

आज में ज़िंदा रह पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

भेदभाव से ऊपर उठ पा रहे हो ?

पूर्वधारणाओं से बच पा रहे हो ?

इंसानियत ज़िंदा रख पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

जुर्म के आगे डट पा रहे हो ?

प्यार के आगे झुक पा रहे हो ?

दोस्त के गले लिपट पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

सर्वप्रथम देश को रख पा रहे हो ?

तिरंगा ऊँचा कर पा रहे हो ?

गर्व से जय हिंद ! कह पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

ख़ुद को स्वतंत्र समझ पा रहे हो ?

दूसरे को स्वतंत्र रख पा रहे हो ?

सही गलत को परख पा रहे हो ?

हाँ ? तो तुम स्वतंत्र हो !

Aksh Gupta, AIMC 

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