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‘माँ तुझे कुछ देना चाहती हूँ’: Poem by Soniya Agrawal, AIMC

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जब तूने मुझे अपने हाथों में लिया, 

तेरी खुशियों का कोई ठिकाना न रहा |

हमेशा से अपने दिल मे जगह दी, 

प्यार में कभी कमी ना की |

चलना बोलना पढ़ना सिखाया, 

मुझे खुद मे एक पहचान दिलाया |

अब मैं तुझे कुछ देना चाहती हूँ, 

माँ मैं तेरी परछाई बनना चाहती हूँ ||

मेरी हर मुस्कान मे तेरी खुशी है, 

हर तकलीफ़ मे तू मेरा सहारा हैं |

कदम-कदम पर जो तूने साथ निभाया, 

मुझे एक नया होसला दिलाया |

अब मैं तुझे कुछ देना चाहती हूँ, 

माँ मैं तेरी हिम्मत बनना चाहती हूँ ||

सपने मेरे विश्वास तेरे, 

इन्हें पाने को मैं निकल चुकी |

जैसे बिना माँगे तूने मुझे सब कुछ दिया, 

वैसे ही तेरे बिन कहे तुझे कुछ देना चाहती हूँ, 

माँ मैं तेरी होनहार बेटी बनना चाहती हूँ ||


Soniya Agrawal, AIMC

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